सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में DBT प्रणाली
यह एक तकनीकी आधारित कार्यक्रम है, जिसे । जनवरी, 2013 को शुरू किया गया। यह कार्यक्रम सरकार के कुशल प्रशासन, पारदर्शिता और जवाबदेही को इंगित करता है। DBT प्रणाली JAM तकनीकी (J-जनधन, A-आधार, M-मोबाइल) पर आधारित है, जहाँ लाभार्थी का सर्वप्रथम बैंक खाता खोला जाता है। आमतौर पर यह खाता जन धन योजना के तहत शून्य बैलेंस पर खोला जाता है तथा उसे लाभार्थी के आधार संख्या तथा मोबाइल संख्या से जोड़ा जाता है। सरकार लाभार्थी को जो नगद सब्सिडी देती है, उसका लाभ केवल उसे ही प्राप्त होता है। इस प्रकार DBT प्रणाली मध्यस्थ या विचौलियों की भूमिका को समाप्त करती है। इस प्रकार DBT प्रणाली की तीन प्रमुख विशेषताएँ हैं-
(i) यह मध्यस्थों की भूमिका को समाप्त करती है।
(ii) इसके द्वारा लाभार्थी को सीधे नगद अंतरण किया जाता है।
(iii) इस प्रणाली में अंतरण अविलंब होता है।
वर्तमान में सरकार अपने अधिकांश लोककल्याणकारी कार्यकमों में DBT का प्रयोग कर रही है; जैसे रसोई गैस सिलेंडर में सब्सिडी,PM किसान योजना, मनरेगा में मजदूरी इत्यादि।
इस PDS में DBT के तहत सरकार राशन की दुकानों से अनाजों का वितरण अत्यंत कम कीमत पर न करके लाभार्थी को उसके बैंक खाते में नगद सब्सिडी प्रदान करेगी। इससे लाभार्थी को विकल्प प्राप्त होगा-
वह बाजार से अपने मनपसंद खाद्यान्न को खरीद सकता है।
वह राशन की दुकानों से भी अनाज उचित दामों पर खरीद सकता है।
सरकार द्वारा PDS में DBT को पायलट परियोजना के रूप में कुछ केंद्र-शासित प्रदेशों, जैसे पुदुच्चेरी, दमन और दीव में शुरू किया गया तथा यह सफल भी रहा। अब सरकार की योजना इसे पूरे भारतवर्ष में लागू करने की है।
यह प्रणाली लाभार्थी की क्रयशक्ति क्षमता में वृद्धि करेगी।
यह मध्यस्थों की भूमिका को समाप्त करेगी।
इससे लाभार्थी को मनपसंद अनाज खरीदने का विकल्प प्राप्त होगा।
यह प्रणाली सरकार के प्रशासनिक खर्च को कम करेगी; जैसे- भंडारण, परिवहन आदि के क्षेत्र में।
अर्थशास्त्री अमर्त्यसेन का मानना है कि PDS में DBT को लागू करने से नगद धन के दुरुपयोग की संभावना बढ़ेगी, जिसका परिवार की महिलाओं और बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
इससे खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ने का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
इससे किसान अत्यधिक उत्पादन के लिये हतोत्साहित होंगे, जिससे कृषि उत्पादन में गिरावट आ जाएगी।
वर्तमान में लगभग 10% जनसंख्या के बैंक खाते ही उपलब्ध नहीं हैं, जिनका खाता खुलवाना एक बड़ी चुनौती है।
उपर्युक्त चुनौतियों के बावजूद सरकार PDS में DBT को लागू करने के लिये तत्पर है। शांता कुमार समिति का मानना है कि यदि PDS में DBT को लागू किया जाए तो सरकार को प्रतिवर्ष लगभग ₹30 हप्तार करोड को बचत होगी, जिसका प्रयोग वह अन्य कल्याणकारी कार्यक्रमों में कर सकेगी।
एक राष्ट्र एक राशन कार्ड सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है, जिसे वर्ष 2020 में पूरे भारतवर्ष में लागू कर दिया गया। इस कार्यक्रम का लाभ देश में हर व्यक्ति/नागरिक को प्राप्त होगा। सरकार इसके माध्यम से देश के सभी नागरिक, विशेषकर प्रवासी मजदूरों को लाभ देना चाहती है (खाद्य सुरक्षा के रूप में)।
इस कार्यक्रम के लिये सबसे अनिवार्य शर्त यह है कि राशन कार्ड अनिवार्य रूप से आधार कार्ड से जुड़ा हो।
प्रवासी मजदूरों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करता है।
मध्यस्थों की भूमिका को न्यून करता है।
यह रिवर्स माइग्रेशन को रोकता है।
पहले सौदेबाजी को शक्ति कोटेदार के पास होती थी क्योंकि उस क्षेत्र में उनका एकाधिकार होता था; किंतु ONORC लागू होने के बाद सौदेबाजी की शक्ति राशन कार्ड धारकों के पास आ गई।
यह सरकार के प्रशासनिक खर्च को कम करता है, जैसे पुराने राशन कार्ड समाप्त करना एवं नए राशन कार्ड बनाना इत्यादि।
इस कार्यक्रम के माध्यम से कोई भी लाभार्थी देश के किसी भी कोने में स्थित राशन की दुकानों से अपने कोटे का अनाज प्राप्त कर सकता है, जो उसकी खाद्य सुरक्षा में सहायक होगा।
इस कार्यक्रम का लाभ केवल उन्हीं प्रवासी मजदूरों को प्राप्त होगा, जिनका प्रवसन अल्पकालिक या मौसमी होगा।
सरकार के पास प्रवासी मजदूरों की संख्या का कोई वास्तविक आँकड़ा उपलब्ध नहीं है, क्योंकि ये बहुत अधिक संख्या में असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रवासी मजदूरों को राशन की दुकानों से केवल अपने कोटे का ही अनाज प्राप्त होता है, जबकि राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ उसे प्राप्त नहीं होता है।
वर्ष 2021 में सरकार द्वारा प्रवासी मजदूरों के लिये 'मेरा राशन' नाम से ऐप शुरू किया गया है, जहाँ लाभार्थी स्वयं अपना पंजीकरण करवा सकता है।
अंतर-राज्य (Inter-state) और अंतरा-राज्य (Intra-state) दोनों में इस कार्यक्रम का लाभ प्रवासियों को प्राप्त होता है।