किसान अपने कृषि उत्पाद को बाजार में विक्रय योग्य बनाने के लिये विभिन्न प्रक्रियाओं को अपनाता है, जैसे अधिग्रहण, भंडारण, परिवहन, प्राथमिक प्रसंस्करण इत्यादि और अपने उत्पाद को बाजार में विक्रय कर उचित मूल्य प्राप्त करता है, इसे ही 'कृषि विपणन' कहा जाता है।
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कृषि विपणन (Agriculture marketing) क्या है?। Agriculture Produce Marketing Committee , APMC में कमियाँ |
1. सस्ता और तीव्र परिवहन
2. कुशल और अत्याधुनिक भंडारण
3. मध्यस्थों की न्यून भूमिका
4. किसानों में धारण करने की क्षमता
5. सूचना का तीव्र और पारदर्शी प्रवाह
APMC- Agricultural produce Market Committee एक Marketing Board है, जो आमतौर पर भारत में राज्य सरकारों द्वारा स्थापित किया जाता है।
भारत में परिवहन बोमा अत्यंत खर्चीला है। भारत में परिवहन लागत GDP का लगभग 15% है, जबकि अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र में यह GDP का मात्र 6.8% है।
भारत में किसानों के पास पर्याप्त भंडार गृहों का अभाव है तथा उपलब्ध भंडार गृह पुराने और अकुशल हैं। हर वर्ष भारत में कुशल भंडारण के अभाव में लगभग 30-32% फल और सब्जियाँ तथा 10-12% अनाज भारत में बर्बाद हो जाते है, जिसका मूल्य लगभग । लाख करोड़ रुपए होता है
भारत में किसान और उपभोक्ता के बीच मध्यस्थों को भूमिका महत्त्वपूर्ण है। इस कारण एक ओर कृषि उत्पादकता में कमी आती है तो वहीं दूसरी ओर खाद्य मुद्रा स्कोति में वृद्धि होती है।
भारत में लगभग 86% सीमांत और लघु किसान हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बेहतर न हो पाने के कारण वे गरीबों में जोवन यापन करते हैं। अतः उत्पादन पश्चात् वे अपने उत्पाद का तुरंत बाजार में विक्रय कर देते हैं, जिससे बाजार में होने वाले मूल्यों के तीव्र उतार-चढ़ाव से उन्हें नुकसान होता है।
भारत में कृषि क्षेत्र में सूचना का प्रवाह अत्यंत धीमा और अपारदर्शी है। किसानों को समय पर सही बाजार मूल्य का पता नहीं चलता, जिससे बाजार में अपने उत्पाद की कीमत वृद्धि का वे लाभ नहीं ले पाते। यही कारण है कि देश में MSP का लाभ केवल 6% किसानों को ही प्राप्त हो पाता है।
भारत में APMC मंडियों के बीच अत्यधिक दूरी पाई गई है। राष्ट्रीय किसान आयोग के अनुसार दो APMC के बीच अधिकतम दूरी 5 km ही होनी चाहिये, जबकि भारत में वर्तमान में दो APMC के बीच की दूरी लगभग 22 km, है जो बहुत दूर है।
APMC में बहुशुल्क प्रणाली लागू है अर्थात् किसान जब APMC में अपने उत्पाद का विक्रय करता है तो उसे कई प्रकार के शुल्क अदा करने पड़ते हैं, जैसे गर्दा शुल्क, तुलाई शुल्क, पल्लेदारी शुल्क, APMC विकास शुल्क इत्यादि। इस प्रकार ये किसानों की लागत को बढ़ा देते हैं और इससे उनका लाभ कम हो जाता है।
कृषि राज्य का विषय है। राज्य सरकार और राज्य की नियामक संस्थाओं द्वारा संचालित वह कृषि मंडी, जहाँ किसान अपने उत्पाद का पहला विक्रय करता है, उसे APMC कहा जाता है।
आजादी के बाद APMC की स्थापना 1950 के दशक में हुई। वर्तमान में देश भर में विभिन्न राज्यों में लगभग 7000 APMC है। APMC की स्थापना का मुख्य उद्देश्य ऐसा नियामको वातावरण सृजित करना है,जहाँ किसानों के हितों की रक्षा की जा सके और उन्हें अपने उत्पाद की उचित और लाभकारी कीमत प्राप्त हो सके। APMC में किसान अधि कतम MSP मूल्य पर अपने उत्पाद का विक्रय करता है।
आज़ादी के बाद से ही देश के सभी राज्य सरकारों का सबसे प्रमुख लक्ष्य रहा है कि किस प्रकार शहरी मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखें। जिससे उपभोक्ता पर कीमत का बोझ न पड़े। इसलिये APMC में हमेशा MSP पर ही किसान अपने उत्पाद का विक्रय कर पाता है। इस प्रकार यह देखा गया है कि वर्तमान में APMC किसानों के शोषण का प्रतीक बन गई है, जहाँ आइतिया या व्यापारी किसानों को अत्यंत कम कीमत पर अपना उत्पाद विक्रय करने के लिये बाध्य कर देते हैं।
APMC में लाइसेंस प्रणाली अंत्यत जटिल और अपारदर्शी है। यहाँ व्यापारी या आड़तियों हेतु लाइसेंस लेने के लिये अनिवार्य शर्त यह है कि उसको स्थायी दुकान APMC में स्थित होनी चाहिये।
APMC में प्रतिस्पद्धों का अभाव देखा गया है। नए व्यापारियों को आसानी से APMC का लाइसेंस नहीं मिल पाता है।
APMC में इस कारण सीमित व्यापारियों के पास ही लाइसेंस होता है, जहाँ किसानों कि संख्या व्यापारियों की तुलना में अधिक हो जाती है। "इस प्रकार यहाँ Oligopoly को स्थिति देखी जाती है, जहाँ सेवा प्रदाता सीमित संख्या में होते हैं, जबकि उसकी तुलना में उपभोक्ता अधिक संख्या में, जैसे टेलीकॉम"। इससे सौदेबाजी की शक्ति किसानों की अपेक्षा व्यापारियों के पास अधिक होती है और वे किसानों को अत्यंत कम कीमत पर अपना उत्पाद विक्रय करने के लिये बाध्य कर देते हैं।
APMC में बहु-लाइसेंस प्रणाली लागू होती है, जहाँ व्यापारियों को उत्पाद और स्थान के आधार पर अलग-अलग लाइसेंस लेना पड़ता है और इसके लिये अधिक फीस चुकानी पड़ती है।
इन लाइसेंस की वैधता केवल एक वर्ष के लिये होती है तथा एक वर्ष बाद लाइसेंस का नवीनीकरण कराया जाता है। उस पर भी अत्यधिक खर्च करना पड़ता है।
APMC में बहुशुल्क प्रणाली लागू है, जहाँ किसान को अपने उत्पाद को विक्रय करने के लिये कई प्रकार के शुल्क देने पड़ते हैं, जैसे गर्दा शुल्क, श्रमिक शुल्क, APMC विकास शुल्क इत्यादि।
पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में यह शुल्क किसान के कुल उपज मूल्य का लगभग 20-25% होता है। इससे किसानों की लागत बढ़ती है और लाभ कम होता है।
APMC में प्रत्यक्ष विपणन की अनुमति नहीं है। प्रत्यक्ष विपणन के अंतर्गत किसान अपने उत्पाद का विक्रय APMC में न करके सीधे उपभोक्ता को कर देता है।
दक्षिण कोरिया जैसा देश ने कृषि में प्रत्यक्ष विपणन को जब लागू किया तो एक ओर जहाँ उपभोक्ता को 30% कम मूल्य चुकाना पड़ा, वहीं दूसरी ओर किसान को लगभग 20% अतिरिक्त मूल्य मिला।
NSO के सर्वे के अनुसार अगर भारत में केवल फल और सब्जी में ही प्रत्यक्ष विपणन को अनुमति दी जाए तो यहाँ किसानों को लगभग 88% मूल्य प्राप्त होगा।
APMC संविदा कृषि (Contract Farming) को प्रोत्साहित नहीं करता है। संविदा कृषि समवर्ती सूची का विषय है।
संविदा कृषि किसान और कंपनी के बीच उत्पादन पूर्व हुआ समझौता है. जिसमें उत्पादन पश्चात् के विक्रय मूल्य को पहले ही निर्धारित कर दिया जाता है।
राज्य सरकार APMC में संशोधन करने के लिये बिल्कुल भी उत्सुक नहीं रहतो, क्योंकि राज्य सरकार को विभिन्न शुल्कों और लाइसेंस से अधिक राजस्व प्राप्त होता है।