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भारत का प्रस्तावना से जुड़े प्रश्न और प्रस्तावना का महत्व और आलोचना |
भारत की प्रस्तावना की आलोचना:-
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना अपरिवर्तनीय है इसका अर्थ है प्रस्तावना एक निर्देश के रूप में कार्य करती है इसे लागू करना सरकार के लिए बाध्यकरी नहीं है यदि सरकार इसे लागू नहीं करती है प्रस्तावना को न्यायालय के माध्यम से लागू करवाया नहीं जा सकता है आलोचकों ने इसी आधार पर प्रस्तावना को दंत विहीन बाघ की संज्ञा दी है ।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना में अस्पष्टता पाई जाती है और इसमें वर्णित पंथनिरपेक्ष समाजवाद और लोकतंत्र जैसे शब्दों के अर्थ स्पष्ट नहीं है ।
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना की संकल्पना अमेरिका से प्रेरित है और इसके भाषा और विषय वस्तु ऑस्ट्रेलिया से प्रेरित है अतः इसमें नवीनता का अभाव है भारत के संविधान निर्माता की मौलिक की देन नहीं मानी जा सकती है |
भारत की प्रस्तावना की महत्व:-
- के एम मुंशी के अनुसार प्रस्तावना भारत के राजनीतिक जन्मपत्री है जिस प्रकार जन्मपत्री किसी व्यक्ति के भावी जीवन के बारे में बताती है उसी प्रकार प्रस्तावना की भविष्य के भारत के रूपरेखा को प्रस्तुत करती है सत्ता स्रोत सत्ता स्वरूप सत्ता के उद्देश्य आदि सब शामिल है
- न्याय मूर्त्ति गजेंद्रगड़कर के अनुसार प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं है इससे शासन करने कि कोई विशिष्ट शक्ति प्राप्त नहीं है फिर भी प्रस्तावना संविधान निर्माता के मस्तिष्क की कुंजी है । इसका अर्थ है कि प्रस्तावना संविधान के निर्वाचन में सहायता करती है और यदि संविधान में कहीं भी अस्पष्टता पाई जाती है तो उसे प्रस्तावना की सहायता से दूर किया जाता है
- ठाकुरदास भार्गव के अनुसार प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा गया है । व्याख्या जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर महत्वहीन है उसी प्रकार प्रस्तावना के आदर्शों के बिना भारत का संविधान महत्वहीन हो जाएगा प्रस्तावना की आदर्श ही संविधान की जीवंत बताते हैं।
- नानी पल्खीवाला के अनुसार प्रस्तावना भारत के संविधान का परिचय पत्र है प्रस्तावना में भारत के संविधान का दर्शन पाया जाता है प्रस्तावना में स्वाधीनता आंदोलन के आदर्श की झलक मिलती है ।
अतः भारत की प्रस्तावना का वर्तमान स्थिति निम्नलिखित है ।
- प्रस्तावना संविधान का अंग है ।
- प्रस्तावना को संशोधन किया जा सकता है ।
- यदि प्रस्तावना में कोई मूल ढांचा पाया जाता है तो उस मूल ढांचे में संशोधन नहीं किया जाएगा
- अभी तक प्रस्तावना में एक बार संशोधन किया गया है 42 वें संविधान संशोधन 1976 में समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता जोड़ा गया
प्रस्तावना से जुड़े सिविल सर्विस परीक्षा से जुड़े प्रश्न निम्नलिखित है और उनका उत्तर भी दिया गया है ।
प्रश्न:- भारत में ब्रिटिश पद्धति के संसदीय लोकतंत्र को अपनाया गया है कि आप वर्तमान परिस्थिति में भारत को संसदीय लोकतंत्र को छोड़कर अध्यक्षात्मक लोकतंत्र अपना लेना चाहिए?
उत्तर- 1989 ई से पहले भारत में एक दलीय प्रभुत्व का यू था जिसके कारण पूर्ण बहुमत की सरकार बनती थी लेकिन 1989 से भारत में दल व्यवस्था में परिवर्तन हुआ एक दलीय प्रभुत्व का अंत हो गया और बहुदलीय व्यवस्था की शुरुआत हुई इस व्यवस्था में किसी दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं होता था जिसके कारण गठबंधन की सरकार बनती थी गठबंधन सरकार अस्थाई होती थी जिससे राजनीति को अस्थायित्व का समस्या उत्पन्न हुई और इससे बचने के लिए अनेक विद्वान ने संसदीय लोकतंत्र को छोड़कर अध्यक्षात्मक लोकतंत्र अपनाने का विचार दिया
लेकिन भारत की परिस्थितियों को देखते हुए अध्यक्षात्मक प्रणाली की बजाए संसदीय प्रणाली अधिक उपयोगी है
- भारत जैसे देश में बड़े पैमाने पर अशिक्षा जातिवाद संप्रदायवाद क्षेत्रवाद आदि पाया जाता है और जनता का मतदान व्यवहार धर्म एवं जाति कारणों से निर्धारण होता है यह आशंका सदैव बनी रहेगी कोई व्यक्ति राष्ट्रपति का निर्वाचन हो जाए अध्यक्षात्मक प्रणाली में ऐसे व्यक्ति को हटाना कठिन होगा और वह देश के लोकतंत्र को नष्ट कर देगी ।
- अध्यक्षात्मक लोकतंत्र की मांग करने एक प्रमुख कारण राजनीतिक और अस्थाई की समस्या आ रही है । लेकिन 2014 के पश्चात भारत में पूर्ण बहुमत की सरकार रही है वर्तमान में राजनीति को स्थायित्व एक प्रमुख समस्या नहीं है ।
- भारत में सर्वोच्च न्यायालय संसदीय लोकतंत्र को संविधान का मूल ढांचा घोषित किया अतः संसदीय लोकतंत्र को हटाने के लिए संविधानिक अड़चन है
- उद्देशिका शब्द गणराज्य के साथ जुड़े प्रतीक विशेषण पर चर्चा कीजिए क्या वर्तमान परिस्थिति में प्रतिरक्षी नीय है ( IAS main 2016)
Answer:- आप इस प्रश्न को हल करके हमारे व्हाट्सएप में या टेलीग्राम वोट को भेज सकते हैं ।
लोकतंत्र के प्रकार ( Type of Democracy)
लोकतंत्र मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।
- प्रत्यक्ष लोकतंत्र:- प्रत्यक्ष लोकतंत्र से तात्पर्य है कि जनता स्वयं शासन चलाती है इसका एकमात्र उदाहरण है । स्वीटजरलैंड
- अप्रत्यक्ष लोकतंत्र:- अप्रत्यक्ष लोकतंत्र से तात्पर्य है कि जनता अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है और जनता की ओर से प्रतिनिधि शासन चलाते हैं अतः अप्रत्यक्ष लोकतंत्र प्रतिनिधिमुलक लोकतंत्र भी कहती है।
संसदीय लोकतंत्र अध्यक्षात्मक लोकतंत्र में अंतर
संसदीय लोकतंत्र:-
- विधायिका कार्यपालिका आपस में जुड़ी हुई होती है विधायिका के सदस्य से ही कार्यपालिका का निर्माण होता है।
- नाममात्र की कार्यपालिका वास्तविक कार्यपालिका का अंतर पाया जाता है।
- वास्तविक कार्यपालिका का निश्चित कार्यकाल नहीं होता है ।
- यह सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत पर कार्य करता है।
अध्यक्षात्मक लोकतंत्र:-- विधायिका कार्यपालिका न्यायपालिका तीनों एक दूसरे से अलग होते हैं ।
- नाम मात्र की कार्यपालिका वास्तविक कार्यपालिका का अंतर नहीं पाया जाता है
- कार्यपालिका का निश्चित कार्यकाल होता है ।
- सामूहिक उत्तरदायित्व जैसी कोई व्यवस्था नहीं होती है
★भारत में प्रधानमंत्री का कार्यकाल कितना होता है यह उत्तर कमेंट में बताएं
संसदीय व्यवस्था का अवगुण:-
- राजनीति को अस्थायित्व समय-समय पर पैदा होती है ।
- संसदीय व्यवस्था में योगिता मंत्री परिषद का अभाव होता है ।
संसदीय व्यवस्था का गुण:-
- संसदीय प्रणाली उत्तरदाई शासन का सुनिश्चित करती है और तानाशाह से रक्षा करती है ।
- विधायिका और कार्यपालिका में समझ पाया जाता है ।
अध्यक्षात्मक व्यवस्था का अवगुण:-
- इसमें समय-समय पर तानाशाह की आशंका उत्पन्न होती है ।
- विधायिका एवं कार्यपालिका समय-समय पर तनाव उत्पन्न होता है ।
अध्यक्षात्मक व्यवस्था का गुण:-
- राजनीति का स्थायित्व होना
- योग्य मंत्री परिषद का निर्माण