प्रस्तावना यह भी बताती है कि भारतीय संविधान के उद्देश्य क्या है? इसके अंतर्गत भारतीय संविधान के चार उद्देश्य साफ तौर पर उल्लिखित है जो इस प्रकार है:-
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भारत का संविधान के उद्देश्य का परिचय ( introduction of Indian constitution's Objective ) |
पहला उद्देश्य -
जनता को ,आर्थिक और राजनीतिक ( Social, Economic and political justice ) उपलब्ध कराना है|यहां न्याय शब्द का अर्थ कानूनी नियम सीना होकर वितरण न्याय सी है जोकि न्यका व्यापक रूप होता है इसका अर्थ है कि समाज में जो आर्थिक संसाधन राजनीतिक शक्ति तथा सामाजिक प्रतिष्ठा उपलब्ध है उनका वितरण जनता के बीच में पूर्ण तरीके से होना चाहिए।
- समाजिक न्याय (Social justice) सामाजिक न्याय में निहित है कि समाज के जो वर्ग सामाजिक कारणों से मुक्त धारा से पीछे रह गए हैं उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण व अन्य सुविधा दी जानी चाहिए अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अन्य पिछड़ा वर्ग तथा महिलाओं को दिए जाने वाले आरक्षण इसी तरह के तहत दिया गया है
- राजनीतिक न्याय ( political Justice ). राजनीतिक नहीं है का अर्थ है कि राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी के लिए जिन सहायक परिस्थिति की आवश्यकता होती है उनका वितरण इस प्रकार से होना चाहिए कि समाज का सामान्य नागरिक भी उन्हें भागीदारी कर सके वयस्क मताधिकार के साथ-साथ वंचित वर्गों के लिए राजनीतिक आरक्षण जैसे प्रधान इसी कारण से किए गए हैं।
- आर्थिक न्याय ( Economic Justice ). आर्थिक न्याय का अर्थ है समाज की कुल संपदा किसे वितरण से है कि समाज के समस्त आर्थिक संसाधन किसी छोटे वर्ग सीमित ना रह जाए विभिन्न वर्गों में आए और जीवन स्तर का अंतराल कम से कम हो मजदूरी की कार्य 10 आए ऐसी न हो कि उनका शोषण किया जा सके हर समिति मजदूरी शोषण किया जा सके और श्रमिक की मजदूरी इतनी जरूरी होगी वह गरिमा पूर्ण तरीके से जीवन निर्वाह कर सकें वर्तमान में चल रहे मनरेगा जैसे कार्यक्रम आर्थिक नियम आदर्श को ही साधन के प्रयत्न है ।
दुसरा उद्देश्य :-
जनता को विचार,अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता ( Liberty of thought, expression,belief, faith and worship ) प्रदान करना है। स्वतंत्रता का यह दर्शन मूल तो फ्रांस की क्रांति से लिया गया है और इस पर कुछ विचार ही प्रभाव अमेरिकी संविधान का भी है इसके अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को उतनी अधिकतम स्वतंत्रता दी जाती है जितनी स्वतंत्रता बाकी व्यक्ति को भी दी जा सके स्पष्ट है कि स्वतंत्रता सीमित नहीं है अनुच्छेद 19 में इन स्वतंत्रता के उल्लेख के साथ-साथ नियुक्तियों का निर्धनों का भी उल्लेख है जो इन स्वतंत्रता को सीमित करते हैं यह सीमाएं सामान्यता समाज की सुरक्षा लोक व्यवस्था शिष्टाचार य सदाचार अपराध को भड़काने किसी मानहानि करने या अदालत की अवमानना करने से संबंधित है इस प्रकार भारतीय संविधान में धर्म और अंतःकरण की स्वतंत्रता भी अत्यंत व्यापक रूप में दी गई है जिसके तहत व्यक्ति अपनी रुचि और आस्था के अनुसार किसी भी धर्म के अनुसरण आचरण को स्वतंत्रता संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 तक इसके विस्तृत प्रदान किए गए हैं
तीसरा उद्देश्य :-
प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता ( Equality of status and Opportunity ) उपलब्ध कराना। समानता का सामान्य अर्थ ऐसी स्थिति जिनमें किसी व्यक्ति अथवा समूह के आसपास विशेषाधिकार ना हो किंतु इसका अर्थ पर्याप्त नहीं है इसका व्यापक या सकारात्मक अर्थ यह है कि सभी व्यक्तियों को ऐसी परिस्थिति मिलनी चाहिए कि वह मोहन उचित गरिमा के साथ समाज में उपलब्ध अवसरों तक समान पहुंच बना सके भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से लेकर 18 तक के बीच समानताएं घंटी के रूप में दी गई है जिसमें विधि के समक्ष समानता अनुच्छेद 14 दहाड़ मिली आदि आधारों पर समानता का निषेध अनुच्छेद 15 लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता अनुच्छेद 16 अस्पृश्यता का अंत अनुच्छेद 17 उपाधियों का अंत अनुच्छेद 18 जैसे प्रधान प्रमुख है इसके अलावा राज्य के नीति निर्देशक तत्व के अंतर्गत पुरुष और महिला के लिए सामान्य कार्य के लिए समान वेतन अनुच्छेद 39 जिसे प्रधान भी समानता के आदर्श की उपलब्धि के संदर्भ में महत्वपूर्ण है|
चौथा उद्देश्य :-
बंधुत्व ( Fraternity ) की भावना का विकास करना | बंधुत्व का आदर्श फ्रांसीसी क्रांति का मुख्य नारा था जिसकी गूंज पूरे विश्व में फैली थी भारतीय संविधान निर्माता ने भी उसे महत्व दिया और प्रस्तावना में शामिल किया चुकी अंग्रेजों को फूट डालो और राज करो नीति के कारण भारतीय समाज में बंधुत्व कि विकास काफी हराश हुआ था और धर्म के आधार पर देश का विभाजन भी हो गया था इसलिए जरूरी था कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए देश के भीतर हम की भावना का समुचित विकास हो यही कारण है कि प्रस्तावना में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने पर बल दिया गया है यहां व्यक्ति की गरिमा से आते हैं कि रूढ़िवादी तथा परंपरावादी किस्म की उस बंधुता से बचने की जरूरत है जो व्यक्ति की गरिमा और स्वाधीनता को अस्वीकार करती तथा उसे समुद्र के दबाव के अनुसार आचरण करने के लिए बाध्य करती है सर्वोच्च न्यायालय भी अनुच्छेद 21 को व्याख्या करती हुई या निर्धारण किया है कि जीवन का अधिकार मूल अधिकार है दूसरी ओर राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने वाली बंधुता से तात्पर्य है कि जो एकता या बंधुता राष्ट्र विरोधी भावना पर आधारित होती है उससे बचने की जरूरत है वही बंधुता वंदनीय है जो देश की एकता को मजबूत करती है उदाहरण के लिए हरियाणा राजस्थान में खाप पंचायत में दिखने वाली एकता अथवा उत्तर भारतीय के विरोध में महाराष्ट्र में उभरने वाली एकता वांछनीय नहीं है क्योंकि इसमें से पहले व्यक्ति की गरिमा के खिलाफ है जबकि दूसरी राष्ट्र की एकता के खिलाफ बंधुत्व की इसी महत्व को ध्यान रखते हुए अनुच्छेद 51क द्वारा संविधान में शामिल किए गए मूल कर्तव्य भी इसे शामिल किया गया है और कहा गया कि प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य होगा कि भारत के सभी लोगों में समरसता और समूह मातृत्व की भावना का निर्माण हो जो धर्म भाषा और उन पर देश या वर्ग पर आधारित सभी भेद भाव से परे हो |
संविधान के अर्थ निर्धारण के लिए उपयोगी ( Useful for consideration's Interpretation)
प्रस्तावना एक अन्य उपयोगी अभी है कि जहां कहीं संविधान के किसी पर अवधान का अर्थ निर्धारण करना कठिन होता है,वहां वह मददगार होती है "बीरूबारी यूनियन मामले -1960" मैं सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि प्रस्तावना का मूल्य महत्व संविधान के अर्थ निर्धारण में है वह संविधान की कुंजी है जहां कहीं भी संविधान की भाषा अस्पष्ट या साबित होती है वहां उसके अर्थ के निर्वाचन के लिए प्रस्तावना की मदद ली जानी चाहिए ।
ऐतिहासिक स्रोत के रूप में उपयोगी ( useful as A Historical Source)
प्रस्तावना की अंतिम उपयोगिता एक ऐतिहासिक स्रोत के रूप में है क्योंकि वह बताती है कि भारतीय संविधान किस दिन स्वीकार तथा अधिनियम किया गया? धातव्य है कि प्रस्तावना में 26 नवंबर 1949 की तिथि का उल्लेख संविधान की स्वीकृति व अधिनियम होने की तिथि के रूप में किया गया है |