भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 Right to fair Compensation & Transparency in Land Acquisition resettlement and rehabilitation Act, (LARR Act) 2013
(भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवज़ा और पारदर्शिता संबंधित भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापना
अधिनियम, 2013)
भूमि अधिग्रहण समवर्ती सूची का विषय है।
भारत में भूमि अधिग्रहण संबंधित सबसे पहला कानून 1894 में लाया गया। इसे भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 कहा जाता है। यह कानून किसानों के हितों को अपेक्षा अग्रेतों के हितों का अधिक ध्यान रखता था।
1. भूमि अधिग्रहण में किसानों की सहमति लेना अनिवार्य नहीं।
2. क्षतिपूर्ति से संबंधित कोई निश्चित प्रावधान नहीं है।
3. पुनर्वास और पुनर्स्थापना की कोई व्यवस्था इस कानून में नहीं थी।
आजादी के बाद भी वर्ष 2013 तक भारत में यह कानून लागू रहा। न्यायमूर्ति सिंधवो ने इस कानून को पूरी तरह किसान विरोधी कहा और इसे समाप्त करके किसानों के हित में नए भूमि अधिग्रहण कानून बनाने की बात कही। अतः सरकार द्वारा वर्ष 2013 में भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 पारित किया गया।
उद्देश्य- इस अधिनियम के अंतर्गत अब भूमि का अधिग्रहण विशेष
उद्देश्य के लिये हो किया जाएगा; जैसे (1) आधारभूत संरचना निर्माण (2) स्कूल-कॉलेज निर्माण (3) खेल परिसर और औद्योगिक गलियारा निर्माण।
• सहमति भूमि अधिग्रहण के लिये भू-स्वामी या किसानों की सहमति अनिवार्य होगी। अगर परियोजना सार्वजनिक-निजी भागीदारी से संबंधित है तो अनिवार्य रूप से न्यूनतम 70% सहमति और निजी क्षेत्र की परियोजना में न्यूनतम 80% सहमति लेना अनिवार्य है।
• क्षतिपूर्ति ग्रामीण क्षेत्र में भूमि के मूल्य का चार गुना और शहरी क्षेत्र में भूमि के मूल्य का 2 गुना क्षतिपूर्ति देना अनिवार्य है।
• अगर अधिग्रहण की गई भूमि में अगले 5 वर्ष तक परियोजना शुरू नहीं की जाती है तो भूमि को उसके भू-स्वामी को वापस लौटाया जाएगा।
• सामाजिक प्रभाव आकलन- (SIA-Social Impact Assesment)
अनिवार्य किया गया है।
• निजी क्षेत्र अधिग्रहण से पहले पुनर्वास और पुनस्र्थापना की उचित व्यवस्था करेगा।
• अगर आवश्यक न हो तो बहुफसली भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा।
और अगर अधिग्रहण किया भी जाता है तो सीमित मात्रा में ही होगा तथा राज्य सरकार उतनी ही बंजर भूमि को उपजाऊ भूमि में परिवर्तित करेगी।
उपर्युक्त अधिनियम किसानों के हितों को ध्यान में रखकर पारित किया गया। इससे उद्यमियों के लिये अपनी परियोजनाओं का संचालन करना कठिन हो गया क्योंकि अब भूमि अधिग्रहण करना न केवल कठिन था बल्कि अत्यंत खर्चीला भी। परियोजनाओं के रुकने से बैंकों का NPA भी बढ़ने लगा और द्वितुलन पत्र की समस्या उत्पन्न हुई। अत: 2015 में सरकार द्वारा इस अधिनियम में संशोधन किया गया जिसके अंतर्गत भूमि का अधिग्रहण विशेष उद्देश्य के लिये किया जाएगा (सस्ता आवास, रक्षा, ग्रामीण विकास, राष्ट्रीय हित और औद्योगिक गलियारा) इसमें तीन प्रकार को छूट दी जाएगी-
सहमति लेना अनिवार्य नहीं
सामाजिक प्रभाव आकलन करना अनिवार्य नहीं।
बहुफसलीय भूमि का भी अधिग्रहण संभव
56% ग्रामीण परिवारों के पास स्वयं की कृषि भूमि नहीं है।
अनुबंध लिखित होंगे।
अनुबंध में सारी शर्तें स्पष्ट होंगी।
भू-स्वामी को राज्य के प्रतिकूल कब्जे का नियम पालन करने की आवश्यकता नहीं।
भूमि पर काश्तकार को ऋण और बीमा का लाभ मिल सकेगा।
काश्तकारों को बेदखली का डर नहीं।
भू-स्वामी को सुरक्षा
काश्तकारों को सुरक्षा
बेकार पड़ी भूमि प्रयोग में
काश्तकारों की आय में वृद्धि
काश्तकारों को आसानी से बैंक से लोन
काश्तकारों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ
काश्तकारों का प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ विवाद होने पर-
कानून में भूमि विवाद मामलों के त्वरित निपटान के लिये भूमि प्राधिकरण (Land tribunal) की स्थापना पर जोर
भारत में भूमि विवाद संबंधित मामलों को न्यायिक प्रक्रिया से अलग रखना चाहिये क्योंकि भारत में न्यायिक प्रक्रिया अत्यंत धीमी और खर्चीली है जिसका बोझ गरीब काश्तकार नहीं उठा पाते।
न्यायिक मामलों में प्रथम दृष्टया काश्तकार को ही पीड़ित पक्ष माना जाना चाहिये और साक्ष्य प्रस्तुत करने का दबाव काश्तकारों की अपेक्षा भू-स्वामी पर होना चाहिये। भूमि संबंधित विवाद के त्वरित निपटान के लिये भूमि प्राधिकरण पर बल देना चाहिये।
भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण पर तोर देना चाहिये।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के भू अभिलेख विभाग द्वारा वर्ष 2008 से भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण के लिये डिजिटल इंडिया का भूमि अभिलेख या भूमि रिकॉर्ड नवीनीकरण कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है जिससे भू-स्वामी को उनके भू-स्वामित्व का अंतिम प्रमाणन दिया जा सके।
सरकार द्वारा भूमि सुधार के लिये NGO और स्वयंसेवी संगठन का अधिकाधिक प्रयोग किया जाना चाहिये।
खुदकाश्त की परिभाषा स्पष्ट होनी चाहिये।
किसान और उसका परिवार खेती के कार्य में संलग्न हो।
किसान और उसका परिवार अपनी कृषि भूमि के पास ही निवास करें।
मौखिक अनुबंधों को लिखित अनुबंधों में परिवर्तित किया जाए जिससे अनौपचारिक काश्तकारों को औपचारिक दर्जा दिया जा सके।
भूमि सुधार मामले में राजनीतिक इच्छाशक्ति दृढ़ होनी चाहिये। संभव हो तो भूमि संबंधित विभाग और मंत्रालय में काश्तकारों को प्रतिनिधित्व देना चाहिये।